॥दोहा॥
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई।
ताके संकट मिटे सब होई॥
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई।
ताके संकट मिटे सब होई॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाल।
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥
नेत्र लाल भृकुटि विकराल॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं॥
रूप सारदा को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनि उबारा॥
दे सुबुद्धि ऋषि मुनि उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़ि महिष दम्भा॥
परगट भई फाड़ि महिष दम्भा॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीर सिन्धु में करत विलासा।
दया सिन्धु दीजै मन आसा॥
दया सिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता॥
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि॥
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
जाको देख काल डर भाजै॥
सोमवारी मृदु मस्तक माला।
देवी को देख विलोकत काला॥
देवी को देख विलोकत काला॥
रूप काली का मातु तुम्हारा।
होता जग को अत्यंत सहारा॥
होता जग को अत्यंत सहारा॥
कृपा करहु नित मम उजियारा।
मो पर रखियो सदा सहारा॥
मो पर रखियो सदा सहारा॥
चालीसा जो कोई नर गावै।
सकल सुख भोग परम पद पावै॥
सकल सुख भोग परम पद पावै॥
देवी दास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥दोहा॥
प्रेम सहित जो ध्यान लगावै।
उसके काज सकल सिद्धावै॥
प्रेम सहित जो ध्यान लगावै।
उसके काज सकल सिद्धावै॥