हनुमान चालीसा

गोस्वामी तुलसीदास कृत • सरल व पठनीय रूप

संक्षिप्त परिचय

हनुमान चालीसा भगवान श्री हनुमान की स्तुति में लिखित 40 चौपाइयों का संकलन है। मान्यता है कि इसके नियमित पाठ से भय, बाधाएँ एवं मानसिक क्लेश दूर होते हैं।

कब पढ़ें?
  • प्रातःकाल या सायंकाल स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर
  • मंगलवार/शनिवार विशेष, परंतु किसी भी दिन किया जा सकता है
  • आसन पर शांति से बैठकर श्रद्धा और स्पष्ट उच्चारण के साथ
कैसे पढ़ें?
  • आरंभ में गुरु/हनुमान जी का स्मरण, अंत में प्रार्थना
  • दीया/अगरबत्ती जला सकें तो उत्तम, पर अनिवार्य नहीं
  • नियमितता सबसे महत्वपूर्ण – दैनिक, साप्ताहिक या आवश्यकता अनुसार
Ready
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जगबंदन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज सवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥
॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥