॥दोहा॥
जय गायत्री माता, जय वेद-मंत्र स्वरूपा। भव-भय-हारी, सुख-कारी, मंगल मूर्ति अनुपा॥
जय गायत्री माता, जय वेद-मंत्र स्वरूपा। भव-भय-हारी, सुख-कारी, मंगल मूर्ति अनुपा॥
जय सविता जगत की माता।
त्रिविध ताप हरन सुखदाता॥
ऋग् यजुः साम अथर्व की गाता।
तेरी महिमा वेद कहि पाता॥
भूर्भुवः स्वः तव ज्योति अपारा।
तत्सवितुर्वरेण्यं सारा॥
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
अर्थ-अनाथों को तू सहारा।
ज्ञान-विज्ञान दे अपारा॥
जो भी तेरा ध्यान लगावे।
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
संतान हीन करे जो सेवा।
सुखी होय, भरे घर-देवा॥
विद्या चाहत जो मन माहीं।
पढ़े चालीसा तजि अवगाहीं॥
माता तेरा नाम जपै जो।
वह पावे सुख हरदम नित सो॥
धन वैभव की कमी न रहती।
घर-घर में खुशहाली बहती॥
अष्ट-सिद्धि नव निधि की दाता।
भक्तन के सब संकट हर्ता॥
त्रिविध ताप से जो ग्रसित हो।
चालीसा पढ़े, सुखी सबको॥
रोग-दोष न कभी सतावे।
माता नाम जपै सुख पावे॥
शरण में जो भी जन आया।
भव-सागर से तरि वह पाया॥
जय गायत्री, वेद-विभूषा।
मंगल-कारी, सुख सम्पूरा॥
श्रद्धा से जो गावे चालीसा।
मुक्त होय भव-बंधन कीसा॥
माता तेरा रूप निराला।
सुख-शांति का अमृत प्याला॥
ध्यान धरत जो जन मन लावे।
सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
सदा सहाय करहु माता।
सकल दुखों की हरो व्यथा॥
जय गायत्री माता भवानी।
सुर-नर-मुनि सब करें वंदनी॥
॥दोहा (समाप्ति)॥
गायत्री चालीसा जो गावे। सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥
गायत्री चालीसा जो गावे। सकल मनोरथ सिद्धि पावे॥