॥दोहा॥
जय इन्द्र देव दयानिधि, त्रिभुवन हितकारी।
सुख-संपत्ति के दाता, भव भय हरण बिनाशकारी॥
जय इन्द्र देव दयानिधि, त्रिभुवन हितकारी।
सुख-संपत्ति के दाता, भव भय हरण बिनाशकारी॥
॥चौपाई॥
जय गजवाहन देव अधीशा। सुर-मुनि सेवित सकल जगदीशा॥
वज्र धरें कर मेघ बरसाओ। दीनन दुख हरि सुख सुख लाओ॥
जय गजवाहन देव अधीशा। सुर-मुनि सेवित सकल जगदीशा॥
वज्र धरें कर मेघ बरसाओ। दीनन दुख हरि सुख सुख लाओ॥
सुरपति देवराज तुम्हारे। नित्य नाम गावत नर-नारी॥
पावक पवन दिशा अधिपति। सब मिलि मानत तुमहि स्वपति॥
पावक पवन दिशा अधिपति। सब मिलि मानत तुमहि स्वपति॥
अर्जुन हित बन में आयो। वज्र प्रकट दानव दल छायो॥
असुर निकंदन महा बलशाली। भुवन त्रय के रक्षक काली॥
असुर निकंदन महा बलशाली। भुवन त्रय के रक्षक काली॥
सुर-समर में तुम बलकारी। त्रास मिटावहु भव भय भारी॥
शरण गहि जो नित दिन ध्यावे। ता पर कृपा सदा ही पावे॥
शरण गहि जो नित दिन ध्यावे। ता पर कृपा सदा ही पावे॥
धरती को सींचत हो जल से। जीवनदाता तुम अति बल से॥
खेत हरे, हरषित किसान। धन्य करें इन्द्र का गान॥
खेत हरे, हरषित किसान। धन्य करें इन्द्र का गान॥
गज ऐरावत तुमहि सुहावै। सत्रु दलन प्रभु मन हरषावै॥
वज्र अंकित कर में शोभा। दुष्ट दलन करै जग लोभा॥
वज्र अंकित कर में शोभा। दुष्ट दलन करै जग लोभा॥
जो नर ध्यान लगाय तुम्हारा। तिन पर कृपा करहु भवबारा॥
सुख संपत्ति सदा घर आवै। संतत मंगल फल वह पावै॥
सुख संपत्ति सदा घर आवै। संतत मंगल फल वह पावै॥
जय जय इन्द्र देव जगत के। मंगल मूर्ति भव भय हरते॥
सुरपति दीनन दुख बिनशाओ। निज सेवक के कष्ट मिटाओ॥
सुरपति दीनन दुख बिनशाओ। निज सेवक के कष्ट मिटाओ॥
॥दोहा (समाप्ति)॥
इन्द्र चालीसा जो पढ़ै, सुने मन लाई।
सुख-संपत्ति सिद्धि मिले, दुख नहिं ठहरि आइ॥
इन्द्र चालीसा जो पढ़ै, सुने मन लाई।
सुख-संपत्ति सिद्धि मिले, दुख नहिं ठहरि आइ॥