काली चालीसा

माँ काली की स्तुति • भय एवं संकट निवारण हेतु

संक्षिप्त परिचय

काली चालीसा माँ काली की स्तुति है — इसके पाठ से भय, संकट और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा मन और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कब पढ़ें?
  • शनिवार या नवरात्रि के दिनों में
  • संकट, भय या रोग से मुक्ति हेतु
  • पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धा से
कैसे पढ़ें?
  • शुद्ध स्थान पर बैठकर ध्यानपूर्वक पाठ करें
  • मन और वाणी से माँ काली का स्मरण करें
  • नियमित पाठ से सुरक्षा, साहस और शांति प्राप्त होती है
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॥दोहा॥
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
वरनउँ काली माता का, गुण अगाध अपारि॥
जय काली माता, भय दूर करनि।
भक्तों की रक्षा करनि, संकट हरनि॥
कालिक रूप धारण कर, राक्षस संहारनि।
संसार में धर्म बढ़ावे, अधर्म हरण करनि॥
अघ, पाप, बंधन सब मिटावे, भक्तन को सुख दे।
जप नाम, ध्यान सतत कर, हर संकट चले॥
कृष्ण कपाल धारण कर, ताण्डव रचावे।
अंधकार दूर भगावे, प्रकाश फैलावे॥
काली माता शिवशक्ति, अनंत रूप अपार।
भक्त जो नमन करे मन से, उसे मिले उद्धार॥
भूत, प्रेत, राक्षस भी तुझे, नम कर डर जाए।
भक्त के घर में सुख शांति, सम्पत्ति आए॥
संकट हरनि, रोग दूर करनि, राक्षस संहारि।
भक्त का कल्याण करनि, ममता अपारि॥
अघों का नाश करनि, शक्ति अपार प्रदा।
भक्त को ज्ञान व बल दे, संकट मिटा सदा॥
भक्ति भाव से जो करे मनन, काली सहाय बनी।
सभी संकट दूर हो जाएँ, घर-परिवार सुशोभित बनी॥
नित्य पाठ जो करे श्रद्धा से, लाभ उसके अनंत।
माता कृपा बरसाए, जीवन में सब संतोष प्राप्त॥
जय जय काली माता, भक्तों की रखवाली।
संकट, भय, रोग, शत्रु सब दूर, जीवन में मंगल बढ़ाली॥
भक्त जो जपे नाम तेरा, संकटों से पार पाए।
दुःख, भय, रोग, और अधर्म, सब उसके दूर भगाए॥
काली माता के चरणों में, जो तन-मन झुके।
भक्ति भाव से जो करे पूजन, उसकी रक्षा सभी करे॥
जो निश्चय कर श्रद्धा से, करे तेरा स्मरण।
उसके घर-परिवार में रहे, सुख-समृद्धि जीवन भर॥
शक्ति का सागर माता, भक्त पर अनुग्रह भारी।
जो तुझसे जुड़े मन, वाणी, कर्म से, उसके जीवन में आनंद उतारी॥
काली माता का यह रूप, न भयकारी न दूषित।
भक्तों के कल्याण हेतु, हमेशा बनी सृष्टि में निर्मलित॥
जय काली, जय काली, भय, रोग और पाप मिटाओ।
भक्तों की रक्षा करो हमेशा, घर-परिवार सुखाओ॥
॥दोहा॥
काली चालीसा जो जो पाठे, भक्तमन से भक्ति सहित।
माता कृपा बरसे उस पर, हर संकट भाग जाए तत्क्षण॥