॥दोहा॥
जय यदुनंदन जय कन्हैया। जय यदुभूषण जय मुरलिया॥
जय यदुनंदन जय कन्हैया। जय यदुभूषण जय मुरलिया॥
१. वंदऊँ प्रभु श्रीकृष्ण मुरारी। सुर नर मुनि सब के हितकारी॥
२. यशोदा के अति प्रिय ललना। माखन चोर ग्वालों के बल्ला॥
३. सुंदर पीताम्बर तन धरयो। गले वनमाला शोभा भरयो॥
४. कर में मुरली बजत मधुराई। सुनत होत मन अति सुखदाई॥
५. गोकुल में रचयो क्रीड़ा खेला। सब गोपि ग्वाल बाल संग मेला॥
६. कालिय नाग मस्तक नाचे। चरण प्रहार करत दुःख साचे॥
७. गोवर्धन गिरि उर धरणे। भक्तन संकट तहाँ टरने॥
८. बंशी बजा कर सबको भाया। ब्रजमंडल में प्रेम लुटाया॥
९. राधा संग रस रचत सुहाना। देखत देव मुनिजन नाना॥
१०. मथुरा गये कंस संहारी। पुनि गोकुल में कीन्हा सुखकारी॥
११. कंस महा असुर संहार्यो। धर्म स्थापित पुनि सुख दार्यो॥
१२. पांडव हित कुरुक्षेत्र में आये। अर्जुन हित गीता सुनाये॥
१३. धर्म अधर्म का भेद बतायो। योग भक्ति का मार्ग दिखायो॥
१४. भक्तन का संकट टारो। अधम अधम को उधारो॥
१५. गोपिकन संग रास रचायो। अनंत प्रेम का सुख लुटायो॥
१६. दीन दुखी पर कृपा करी। अज्ञान तिमिर सब हरि ली॥
१७. मुरली की मधुर तान सुनाई। सबके मन में भक्ति समाई॥
१८. मीरा ने प्रभु को पाया। भक्तिरस में जीवन बिताया॥
१९. उद्धव ग्यान के उपदेश पावे। प्रेम भक्ति में मोहित हो जावे॥
२०. माखन मिश्री अति प्रिय लागे। सब बालक संग प्रेम जगावे॥
२१. यमुना तट पर खेल रचायो। सबको प्रेम का सुख दिलायो॥
२२. दधि लुटत माखन चुरायो। सबको हँस-हँस प्रेम लुटायो॥
२३. गीता ज्ञान अति अमृत बरसो। जीवन का संशय सब हरसो॥
२४. भक्तों का रक्षक कहलाओ। दुष्टों का नाश कर दिखलाओ॥
२५. द्वारिका नगर में राज सजायो। धर्म संस्थापन पुनि करायो॥
२६. सत्य युग त्रेता द्वापर माहीं। तव महिमा गाई सब साहीं॥
२७. भव सागर से पार उतारो। भव बंधन से मुक्त कराओ॥
२८. कृपा करहु दीन पर प्यारे। अज्ञान हरहु भव भय टारे॥
२९. नाम जपत सब पाप नशावे। भव भव से मुक्त करावे॥
३०. नारद मुनि गुण गन गावें। शुकदेव आदि संत सुख पावें॥
३१. रुक्मिणी संग विवाह रचायो। भक्तन का मान बढ़ायो॥
३२. सुदामा का मान बढ़ायो। दरिद्रता का दुख मिटायो॥
३३. अर्जुन सारथी बनि आये। धर्म युद्ध में जीत दिलाये॥
३४. भक्तन का विश्वास बढ़ायो। जीवन में सुख आनंद लुटायो॥
३५. भक्तों के तू पालनहारे। दीन दुखी जन के सहारे॥
३६. गोकुल नंदन कन्हा प्यारे। सबके संकट हरनिहारे॥
३७. चालीसा जो कोई नर गावे। सब दुख दोष भव बंधन टावे॥
३८. संतत पाठ करै मन लाई। कृष्ण कृपा पावे सुखदाई॥
३९. दीनदयाल दयालु कहलाओ। करुणा करि भव से तारो॥
४०. तुलसीदास प्रभु शरण तुम्हारी। कृपा करहु प्रभु मुरारी॥
॥दोहा॥
जो पाठ करे कृष्ण चालीसा। होहि सिद्धि साखी गौरीसा॥
जो पाठ करे कृष्ण चालीसा। होहि सिद्धि साखी गौरीसा॥