॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय साईं सदगुरु दयाल। जयति जगत सब रखनहार॥
दीनदयाल भक्ति सुप्रसन्ना। तुझ बिना कौन करे दुख हरणा॥
शिर्डी नगरी बसे साईंनाथा। भक्तों के तुम हो मन त्राता॥
धन धान्य तन मन सुखदाता। संकट हरण भव भय त्राता॥
भक्ति मार्ग दिखाओ साईं। संत सहाय सदा सुखदायी॥
श्रद्धा सबुरी का तुम पाठ पढ़ाया। जीवन का सच्चा मार्ग बतलाया॥
अन्न जल वस्त्र दिया दानी। शरण पड़े सो भयो सुहानी॥
चरणों में जिसका भी मन लागा। भवसागर से तरि वो भागा॥
राम नाम का उपदेश सुनाया। हरि भक्ति में मन को लगाया॥
जप ध्यान धुनि में मगन रहे। अपने भक्तों के संग सदा रहे॥
रोग शोक दुख मिट जाएं। साईं कृपा से सुख मिल जाएं॥
भक्ति भाव से जो गुण गावे। साईं कृपा दृष्टि वह पावे॥
कंगालों के कष्ट मिटाए। निर्धन के घर दीप जलाए॥
साईं तेरा कोई न दूजा। शरण पड़े उसका हो काज पूरा॥
साईं तेरी लीला न्यारी। दीनबंधु संकट हारी॥
धन्य-धन्य साईं अवतारा। जग में किया सुख का पसारा॥
साईं नाम सदा सुखदायी। भक्तों के संकट हरन समाई॥
साईं के दरबार निराले। दरश पाकर मिटें दुख काले॥
साईं की महिमा अगम अपारा। त्रिभुवन में छाई जयकारा॥
भवसागर में पार उतारे। साईं बाबा शरण हमारे॥
साईं सच्चे सदगुरु प्यारे। भक्तों के सब काज सँवारे॥
भक्ति भाव से बंदन करूं। चरणों में मैं शीश धरूं॥
जय साईं सदगुरु दयाल। भक्तों के सब मंगल करणहार॥
॥ दोहा (समाप्ति) ॥
साईं साईं जप करैं, संकट मिटै सब आय।
कहत अयोध्या दास गुरु, पायो सुख की छाय॥
साईं साईं जप करैं, संकट मिटै सब आय।
कहत अयोध्या दास गुरु, पायो सुख की छाय॥