श्री संतोषी माता चालीसा

प्रेम, धैर्य और संतोष की देवी माँ संतोषी की स्तुति

संक्षिप्त परिचय

श्री संतोषी माता चालीसा प्रेम, धैर्य और संतोष की देवी, माँ संतोषी की महिमा का वर्णन करती है। शुक्रवार के दिन इनका व्रत और पाठ करने से भक्तों को जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति होती है।

कब पढ़ें?
  • नियमित रूप से प्रतिदिन, विशेषकर शुक्रवार को
  • जीवन में शांति और संतोष पाने के लिए
  • कठिनाइयों को धैर्य से पार करने के लिए
कैसे पढ़ें?
  • स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर, शांत मन से पाठ करें
  • माता संतोषी की प्रतिमा के सामने बैठें और ध्यान करें
  • पूरे ध्यान और श्रद्धा के साथ, स्पष्ट उच्चारण के साथ
Ready
॥दोहा॥
बन्दौं श्री गणेश को, धरि सिन्दूर ललाट।
जय संतोषी मां, कहो पूरी करो सब ठाट॥

जय संतोषी मां जग जननी। धन-धान्य सुख सम्पदा करनी॥
जय हो जगत जननि, जय मां। जय जय मां, संतोषी मां॥
शुक्रवार के दिन, तेरा ध्यान धरें। मनवांछित फल, हर नर-नारी पावें॥
तुम हो ज्ञान, विवेक की दाती। तुम ही हो सबकी भाग्यविधात्री॥
तुम्हारी कृपा से, सब काम बने। तुम्हारी कृपा से, सब सुख मिले॥
तुम्हारी कृपा से, सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से, सब शुभ हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
तुम्हारी कृपा से सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से सब सुख पास हो॥
तुम्हारी कृपा से सब काम हो। तुम्हारी कृपा से सब पुण्य का हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
तुम्हारी कृपा से सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से सब सुख पास हो॥
तुम्हारी कृपा से सब काम हो। तुम्हारी कृपा से सब पुण्य का हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
तुम्हारी कृपा से सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से सब सुख पास हो॥
तुम्हारी कृपा से सब काम हो। तुम्हारी कृपा से सब पुण्य का हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
तुम्हारी कृपा से सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से सब सुख पास हो॥
तुम्हारी कृपा से सब काम हो। तुम्हारी कृपा से सब पुण्य का हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
तुम्हारी कृपा से सब दुख दूर हो। तुम्हारी कृपा से सब सुख पास हो॥
तुम्हारी कृपा से सब काम हो। तुम्हारी कृपा से सब पुण्य का हो॥
जो नर, नारी इस चालीसा को पढ़े। सो नर, नारी सब दुख हरें॥
धन, समृद्धि, सुख, शांति। सब देहु मातु, हे शांति॥
॥दोहा॥
जय संतोषी मां, जगत जननी।
दया, कृपा, सुख, शांति, समृद्धि, सब देनी॥