सरस्वती चालीसा

माँ शारदा की स्तुति • विद्या और बुद्धि की प्राप्ति हेतु

संक्षिप्त परिचय

सरस्वती चालीसा ज्ञान, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की वंदना है। इसके पाठ से विद्या, कला और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।

कब पढ़ें?
  • बुधवार, वसंत पंचमी या परीक्षा से पहले
  • प्रत्येक सुबह अध्ययन/कार्य से पहले
  • नियमित पाठ से विद्या और स्मरणशक्ति बढ़े
कैसे पढ़ें?
  • शुद्ध स्थान पर, माँ सरस्वती की प्रतिमा/चित्र के सामने
  • दीपक व धूप के साथ श्रद्धापूर्वक
  • मन एकाग्र कर प्रत्येक चौपाई का उच्चारण करें
Ready
॥दोहा॥
जय जय जगतारिणि माता। विद्या-बुद्धि दे शुभ गाता॥
१. जय सरस्वती माता जय जय। शरण पड़े जो तिहुँ जग भय॥
२. वीणा पुस्तक कर में धारी। शक्ति स्वरूपा जगत उजियारी॥
३. शुभ्र वस्त्र मोतियन माला। ज्ञान दायिनी भव दुःख हाला॥
४. वन्दऊँ माँ वर दायिनी। करज विध्न सब मिटावनी॥
५. करहु कृपा विद्या हितकारी। हृदय में बुद्धि प्रकाश उबारी॥
६. मोह अज्ञान तिमिर हरि। सुमिरत मातु भवानी त्रास टरि॥
७. शरण गहूँ जन तव माता। त्राहि त्राहि अरज सुनि त्राता॥
८. काव्य गीत नाटक रस माला। सब विद्या तव चरण निवाला॥
९. वेद पुरान शास्त्रन गाता। तव महिमा सब कोई बताता॥
१०. शंकर के तुम प्रिय भवानी। ब्रह्मा विष्णु जननि जग ज्यानी॥
११. चार वेद की तुम उपजाई। सब विद्या जग में फैलायी॥
१२. गाऊँ गुण तव प्रेम उपासी। दूर करहु मम अज्ञान त्रासी॥
१३. सुख संपत्ति विद्या दे माता। दूर करहु सब क्लेश विपाता॥
१४. दुर्गा लक्ष्मी तू जगदम्बा। सबकी पूज्य भव भय खम्बा॥
१५. रचना में तुम रही समाई। जीवन में सुख-शांति पाई॥
१६. बालक को तू पाठ पढ़ावे। मूर्ख को विद्वान बनावे॥
१७. धरणि आकाश में तव छाया। सबने तेरा नाम गुण गाया॥
१८. हंस वाहन मोर सुहाई। भव भव बन्धन छिन में जाई॥
१९. भक्त जो तव नाम उचारें। सब कष्ट भव से पार उतारें॥
२०. संकट हरनि कल्याण करावनि। शरण पड़े सो भव से तरावनि॥
२१. जय सरस्वती करुणा धामा। कृपा करहु मम बुद्धि परामा॥
२२. कण्ठ खोल गुन गान सुनावो। भक्तन की रक्षा बनि आओ॥
२३. विद्या बुद्धि देउ उर माहीं। तन मन निर्मल करहु तुम्ही॥
२४. मातु कृपा करु चहुं ओर। दूर करहु सब संशय घोर॥
२५. जो जन सरस्वती चालीसा। पढ़त-गावत सदा बखानीसा॥
२६. सब सुख लाभ उसे होई। विद्या-बुद्धि बढ़े सोई॥
२७. मातु प्रसन्न करहु मनु भावा। भव दुख दारिद्र्य मिटावा॥
२८. करहु कृपा विद्या वितरनी। बनहु कृपा ममता अमरनी॥
२९. श्रीविद्या माता सुखकारी। करहु कृपा भव दुख हारी॥
३०. भक्तन की अरज सुनि लेहु। मनोवांछित फल सब देहु॥
३१. ब्रह्मविद्या की तू है दाता। शरण गहे तो भय सब ताता॥
३२. अगणित गुण तव वर्णन नाहीं। ब्रह्मादिक भी तव महिमा गाहीं॥
३३. शरण गहूँ अब माता भवानी। विद्या बुद्धि दो जग जननी॥
३४. शंकर जी तव नाम ध्यावे। नारद मुनि हरषि गुन गावे॥
३५. कृपा करहु जन उर उर माहीं। मोह बन्धन सब हरहु तुम्ही॥
३६. अज्ञान तिमिर हरहु भव माता। कृपा करहु विद्या विधाता॥
३७. चालीसा यह जो नर गावे। भव भय बन्धन सब मिटावे॥
३८. विद्या-बुद्धि उसको होई। मातु प्रसन्न कृपा कर सोई॥
३९. सुख-सम्पत्ति मिलै अपार। होई सब पर माँ कृपा धार॥
४०. जय जय जय सरस्वती माता। भक्तन की रक्षा करि त्राता॥
॥दोहा॥
जो यह चालीसा पढ़ै मन लाई। विद्या-बुद्धि होई सुखदाई॥