॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुज, तनु श्याम विराजे। माथे रतन मुकुट छबि छाजे॥
चारि भुज, तनु श्याम विराजे। माथे रतन मुकुट छबि छाजे॥
पर कपास, कर त्रिशूल सजीले। गर्दभ रुधिर बदन अति पीले॥
गज वाहन पर बिराजत है। लोह चबूतरे बिराजत है॥
गज वाहन पर बिराजत है। लोह चबूतरे बिराजत है॥
काली वस्त्र तिल तेल प्रीय। नम्र भाव से करें जो सेव॥
कहत शनि दास सुनहु मम बानी। संत हरष मन होहिं सुखखानी॥
कहत शनि दास सुनहु मम बानी। संत हरष मन होहिं सुखखानी॥
सूर्य पुत्र जग पालनहारा। भक्तन हित करुनानिधि सारा॥
नित नवग्रह में श्रेष्ठ तुम्हारी। महिमा अमित जगत में भारी॥
नित नवग्रह में श्रेष्ठ तुम्हारी। महिमा अमित जगत में भारी॥
जो नर मन से तुम्हें ध्यावै। तिन के कष्ट शीघ्र ही जावै॥
जो शनि नाम रटै मन लाई। तिन की गति विपरीत न जाई॥
जो शनि नाम रटै मन लाई। तिन की गति विपरीत न जाई॥
जो कोई तिल तेल चढ़ावे। शनि कृपा उन पर ही पावे॥
काली उड़द दान जो करई। शनि कृपा तिन मन पर भरई॥
काली उड़द दान जो करई। शनि कृपा तिन मन पर भरई॥
जो कोई शनिव्रत करि लावे। शनि प्रसन्नता शीघ्र ही पावे॥
करि शनिवार को शनि पूजा। मिटे सकल कष्ट मन दूजा॥
करि शनिवार को शनि पूजा। मिटे सकल कष्ट मन दूजा॥
दुःख दरिद्रता दूर भगावै। रोग शोक संताप मिटावै॥
सूर्य पुत्र की करो अराधा। सब दुख हरन करैं तुम सादा॥
सूर्य पुत्र की करो अराधा। सब दुख हरन करैं तुम सादा॥
अष्ट दशायें जो सतावै। निश्चय ही दूर भगावै॥
कहत अयोध्यादास हमारी। शनि कृपा दृष्टि सुखकारी॥
कहत अयोध्यादास हमारी। शनि कृपा दृष्टि सुखकारी॥
॥दोहा॥
जय जय जय शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय हमारी।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जय जय जय शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय हमारी।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥